चन्द्रमा पर आक्सीजन सहित नौ तत्व मिलने की हुई पुष्टि हाइड्रोजन की खोज जारी, बसा सकेगा इंसान चद्रमा पर बस्तियां!

Murari Kumar - Senior Content Writer
चन्द्रमा पर आक्सीजन सहित नौ तत्व मिलने की हुई पुष्टि हाइड्रोजन की खोज जारी, बसा सकेगा इंसान चद्रमा पर बस्तियां!

चन्द्रमा पर आक्सीजन सहित नौ तत्व मिलने की हुई पुष्टि हाइड्रोजन की खोज जारी, बसा सकेगा इंसान चद्रमा पर बस्तियां!

किसी भी मां के लिए अपने बच्चे को चुप करवाने या सुलाने के लिए चंद्रमा एक अचूक हथियार के रूप में काम करता रहा है। इस अभेद्य हथियार से संबंधित लोरियां चंदा मामा दूर के, पूए पकाए गूर के और मेरा चंदा है तू मेरा तारा है तू अक्सर  इसकी गूंज सभी घरों में सुनाई दे जाती है। इसके अलावा चांद कवियों और गीतकारों के लिए भी एक रोमानी विषय रहा है। भारतीय फिल्मों में प्रेयसी की तुलना चांद से करने का लंबा रिवाज रहा है, जो आज भी  जारी है। इनसभी बातों  में एक बात दिलचस्प रही कि सब ने चांद की कल्पना को हमेशा  कल्पनाओं में ही देखा है। किसी ने उसे यथार्थ में नहीं देखा। लेकिन भारत के हालिया चांद-3 मिशन की सफलता ने सभी कल्पना पर विराम लगाते हुए चंद्रमा को यथार्थ में परिवर्तित कर दिया है। भारत का चंद्रमा के लिए यह तीसरा मिशन है। भारत ने चंद्रमा की ओर अपना पहला कदम वर्ष 2008 में बढ़ाया था। हालांकि यह मिशन आंशिक रूप से ही सफल रहा था, लेकिन चंद्रयान तीन मिशन को पूरी तरह सफल करार दिया जा रहा है। इसकी सफलता ने न केवल भारत के लिहाज से बल्कि वैश्विक लिहाज से भी कई मायने में अहम है। खास बात यह रही कि भारत ने रूस के लूना मिशन के असफल होने के तुरंत बाद यह सफलता हासिल की। दूसरी बात यह रही कि भारत का ऑर्बिटर चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग की, जो भारत की तकनीकी मजबूती को दर्शाता है। सबसे विशेष उपलब्धि  यह रही कि भारत ने यह सफलता चंद्रमा के साउथ पोल यानी दक्षिणी ध्रुव पर हासिल की। यही वजह है कि वर्त्तमान समय में चांद का साउथ पोल वैश्विक चर्चा का केंद्र बिंदु बना हुआ है। रूस का लूना मिशन भी साउथ पोल को ही समर्पित था। इसके अलावा अमेरिका और चीन की भी गहरी दिलचस्पी साउथ पोल पर पहुंचने में है। इसलिए आज हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर जाने में पूरी दुनिया की दिलचस्पी क्यों है? साथ ही साथ इस बात की भी पड़ताल करेंगे कि दक्षिणी ध्रुव से वैश्विक समुदाय को क्या हासिल होगा? इसके अलावा चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव से जुड़ी चुनौतियों को भी समझने का भरपूर प्रयास करेंगे। सबसे पहले हम समझते हैं कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में पूरे वैश्विक समुदाय की दिलचस्पी आखिर क्यों है? दरअसल, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में वैश्विक समुदाय की दिलचस्पी को अंतरिक्ष दौड़ टू प्वाइंट के रूप में देखा जा रहा है ।

Chandrayaan-3
Chandrayaan-3

वर्ष 2026 तक जाने वाला चीन के चांग सात रोबोटिक अन्वेषण मिशन की भी दिलचस्पी चांद के दक्षिणी ध्रुव में है। इसके अलावा नासा का आर्टेमिस कार्यक्रम चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर ही मनुष्यों को भेजने की कोशिश में है। गौरतलब है कि आर्टेमिस तीन मिशन के तहत नासा वर्ष 2025 तक चंद्रमा पर पहली महिला को भेजने की कार्यों की दिशा में प्रगतिशील है। नासा के इस मिशन की दिशा चन्द्रमा का दक्षिणी ध्रुव ही  है। चंद्रमा के साउथ पोल मिशन को लेकर मची इस वैश्विक भागम भाग को लेकर नासा का मनना है कि चंद्रमा का साउथ पोल रहस्य, विज्ञान और रोमांच से भरपूर है। वैसे तो चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव से जुड़ी कई महत्वपूर्ण रहस्य हैं, जिन पर से पर्दा उठना अभी बाकी है, लेकिन वर्तमान में दिलचस्पी की सबसे बड़ी वजह पानी है। गौरतलब है कि नासा के 1998 में भेजे गए पहले मिशन लूनर प्रोस्पेक्ट में इस बात के सुबूत मिले थे कि पानी में बर्फ की सबसे अधिक सांद्रता साउथ पोल के छायादार गड्ढों में है। दरअसल, चंद्रमा पर पानी जैसी किसी वस्तु के होने का अनुमान 1960 के दशक की शुरुआत में ही वैज्ञानिकों ने लगाया था। लेकिन नासा के अपोलो मिशन द्वारा लाए गए नमूनों के विश्लेषण से उन्हें निराशा हाथ लगी । यह निराशा वर्ष 2008 में दूर हुई, जब ब्राउन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने नई तकनीक के साथ चंद्रमा के नमूनों का पुनः दोबारा निरीक्षण किया। इस खोज में वैज्ञानिकों को चंद्रमा के ज्वालामुखी से प्राप्त छोटे टुकड़ों के अंदर हाइड्रोजन जैसा पदार्थ प्राप्त हुआ। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि तमाम वैश्विक पहल के बावजूद चांद पर पानी होने का ठोस सबूत मुहैया करवाने का गौरव वर्ष 2009 में इसरो के चंद्रयान एक मिशन से हासिल हुआ। सवाल यह है कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव से क्या हासिल होगा? दरअसल, वैश्विक समुदाय की दिलचस्पी की वजह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव से कई लाभों के मिलने की संभावना से जुड़ी है। यहां से मिलने वाले लाभों की बात करें तो पहला लाभ यहां से मिलने वाले पानी से जुड़ा हुआ है। दरअसल, यहां के पानी से कई भू वैज्ञानिक और आर्थिक लाभ मिलने की संभावना है। भू वैज्ञानिक लाभ की बात करें तो इस संबंध में वैज्ञानिक। का मानना है कि दक्षिणी ध्रुव चंद्रमा के उस क्षेत्र में स्थित है जहां कभी प्रकाश नहीं पहुंचा है। यहां से मिलने वाला पानी ब्रह्मांड के कई रहस्यों को अपने आगोश में समेटे हुए है। साथ ही यह जल प्राचीन भी है। दक्षिणी ध्रुव के जल में मौजूद इन गुणों के कारण ब्रह्मांड के कई रहस्यों को उजागर होने की संभावना जताई जा रही है। इस संबंध में उनका मानना है कि इस जल के माध्यम से ज्वालामुखियों, धूमकेतुओं और क्षुद्र ग्रहों के बारे में सटीक जानकारी हासिल की जा सकती है। इसके अलावा महासागरों की उत्पत्ति से जुड़े कुछ अनसुलझे गुत्थियों को भी सुलझाया जा सकता है। दुनिया की दिलचस्पी इस पानी से मिलने वाले आर्थिक लाभों को लेकर भी है। दरअसल, कई देश चंद्रमा पर मानव मिशन भेजने की योजना बना रहे हैं। यहां जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों को पीने के लिए पानी की आवश्यकता होगी। गौरतलब है कि चंद्रमा पर पानी ले जाना काफी खर्चीला है। वहां पानी ले जाने के लिए अंतरिक्ष एजेंसियों को एक मिलियन डॉलर प्रति लीटर तक चुकाना पड़ता है। ऐसे में अगर चंद्रमा के साउथ पोल पर पानी स्थानीय रूप से उपलब्ध हो जाता है तो अंतरिक्ष उद्यमी इसे अंतरिक्ष यात्रियों को स्थानीय रूप से मुहैया करवाने के अवसर के रूप में देख रहे हैं। इसके अलावा इससे रॉकेट पर अतिरिक्त भार वहन करने में व्यय होने वाले ईंधन के अतिरिक्त भार में भी कमी की जा सकती है। अगर पानी की पुष्टि हो जाती है तो चंद्रमा पर स्थाई मानव बस्तियां बसाने की कल्पना भी साकार हो सकती है। गौरतलब है कि चंद्रमा के वायुमंडल में ऑक्सीजन का अभाव है, लेकिन मानव जीवन के लिए ऑक्सीजन अनिवार्य शर्त है। इस संबंध में वैज्ञानिकों का मानना है कि यहां से मिलने वाले पानी से ऑक्सीजन प्राप्त किया जा सकता है। साथ ही ग्रीन हाइड्रोजन तकनीक के माध्यम से ईंधन के लिए हाइड्रोजन का भी उत्पादन किया जा सकता है। चंद्रमा को लेकर दिलचस्पी इस बात से भी बढ़ जाती है कि अभी तक यहां पर की जाने वाली गतिविधियां वैश्विक नियमों से मुक्त हैं। इस संबंध में वर्ष 1967 के संयुक्त राष्ट्र बाह्य अंतरिक्ष संधि किसी भी देश को चंद्रमा पर स्वामित्व का दावा करने से रोकती है। साथ ही अभी तक ऐसा कोई अंतरराष्ट्रीय कानून मौजूदा समय में नहीं है जो यहां पर वाणिज्यिक कार्य पर लगाम लगा सके। इस तरह देखें तो चंद्रमा तमाम संभावनाओं से भरपूर है। वैश्विक समुदाय के बीच इन संभावनाओं को दोहन करने की होड़ लगी हुई है। लेकिन वह कहते हैं ना कि सफलता की राह चुनौतियों से भरपूर होती है। साथ ही सफलता जितनी बड़ी होती है, उससे जुड़ी चुनौतियां भी उतनी बड़ी होती हैं। वास्तव में कुछ ऐसा ही चंद्रमा के साथ भी है।

 चन्द्रमा से जुड़ी चुनौतियों

प्रज्ञान रोवर

अमेरिकी यूनिवर्सिटी ऑफ रॉटरडैम के ग्रहीय भूविज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों की पहली चिंता पानी से जुड़ी हुई है। इस संबंध में उनका कहना है कि चंद्रमा पर पर्याप्त गुरुत्वाकर्षण का अभाव होने के कारण यहां पर पानी ठोस रूप में मौजूद है। इसके कारण वे इस बात से आश्वस्त नहीं हैं कि मिलने वाला बर्फ खनन द्वारा निकाले जाने योग्य है अथवा नहीं। साथ ही वे इस बर्फ को पानी में परिवर्तित करने से जुड़ी चुनौतियों की भी बात कर रहे हैं। इसके अलावा उनको बर्फ की गुणवत्ता को लेकर भी संदेह है। उनका मानना है कि अगर बर्फ की गुणवत्ता अच्छी नहीं हुई तो उसका पानी के रूप में दोहन करना संभव नहीं होगा। वैज्ञानिकों की दूसरी चिंता साउथ पोल की विषम भौगोलिक स्थिति से जुड़ी है। इस संबंध में वैज्ञानिकों का कहना है कि यह क्षेत्र गड्ढों और गहरी खाइयों से भरा है। साथ ही भूमध्यरेखीय क्षेत्र से बहुत दूर है। इसके कारण यहां सॉफ्ट लैंडिंग करना आसान नहीं है। यहां रॉकेट को लैंड कराने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इन सबके अलावा तीसरी चुनौती चंद्रमा पर मिशनों की असफलता से जुड़ी हुई है। इस संबंध में वैज्ञानिकों का कहना है कि चंद्रमा पर सफल होने वाले मिशनों में निरंतरता का अभाव रहा है। हालिया निराशा का पहलू रूस के लूना 25 मिशन की विफलता से जुड़ी हुई है। इसके अलावा भारत का भी मिशन नाकाम हो चुका है। अंत में जान लेते हैं निष्कर्ष के बारे में। चंद्रयान तीन मिशन की सफलता ने पूरी दुनिया के देशों को एक नई राह दिखाई है। इस मिशन की सफलता से जुड़ी सबसे बड़ी बात यह है कि इसने चंद्रमा के साउथ पोल पर सॉफ्ट लैंडिंग की। हालांकि वैज्ञानिक चंद्रमा के साउथ पोल से जुड़े कई चुनौतियों की ओर इशारा कर रहे हैं, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि वैज्ञानिक भविष्य की चुनौतियों का कोई न कोई निदान जरूर निकाल लेंगे। हालांकि निदान की दिशा में वैश्विक समुदाय को सामूहिक पहल करने की आवश्यकता है। इस दिशा में नासा का आर्टेमिस मिशन पहल उत्साहित करने वाला है। चंद्रमा के साउथ पोल से जुड़ा यह मिशन इसके लिए एक वैश्विक मंच मुहैया करवाता है।

भारत का चंद्रयान -3

चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर

Chandrayaan-3 चांद के साउथ पोल पर खोजबीन कर रहा है। इसरो का कहना है कि चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर ठीक तरीके  से काम कर रहा है। प्रज्ञान रोवर ने चांद के साउथ पोल पर ऑक्सीजन (O) और सल्फर (S) की खोज की है। इसके साथ साथ  प्रज्ञान ने चांद पर एल्युमीनियम (Al), कैल्शियम (Ca), लौह (Fe), क्रोमियम (Cr), टाइटैनियम (Ti), मैंगनीज (Mn), सिलिकॉन (Si) का भी पता लगाया है। अब हमारा चंद्रयान चांद पर हाइड्रोजन की खोज कर रहा है। अगर वहां हाइड्रोजन की मौजूदगी का पता लग गया तो ये चंद्रयान-3 मिशन की सबसे बड़ी सफलता होगी। क्योंकि हाइड्रोजन और ऑक्सीजन की मदद से पानी बनाया जा सकता है, इसका मतलब ये होगा कि चांद के साउथ पोल पर पानी की मौजदूगी के निशान मिल जाएंगे। जिससे की चन्द्रमा पर आक्सीजन सहित नौ तत्व के साथ हाइड्रोजन मिल जाता है तो बसा सकेगा इंसान चद्रमा पर बस्तियां!

इंडिया चंद्रमा के साउथ पोल पर पहुंचने वाला पहला देश है। चांद के साउथ पोल को लेकर हमेशा इस तरह के तथ्य सामने आते रहे हैं कि वहां बर्फ के रूप में पानी मौजूद है। पानी की मौजूदगी चांद पर जीवन होने का प्रमाण भी साबित हो सकता है। जीवन के लिए पानी बेहद जरूरी है लेकिन इसके अन्य उपयोग भी हैं। यदि  चांद पर पानी मिलता है तो इसका उपयोग  मशीनों को ठंडा रखने और रॉकेट ईंधन बनाने में किया जा सकता है, जो स्पेस मिशन के लिए ज्यादा  फायदेमंद हो सकता है।

चांद पर ऑक्सीजन के बाद हाइड्रोजन मिलना स्पेस जगत में बेहद महत्वपूर्ण खोज हो सकती है। इसके बाद स्पेस एजेंसिंया एक कदम आगे के मिशनों के बारे में सोच पाएंगी। चांद पर आसानी से एस्ट्रोनॉट को भेजा जा सकेगा। पीने और मशीनों को ठंडा रखने के लिए पानी मिल सकेगा। इसके अलावा सांस लेने योग्य हवा या ईंधन भी बनाया जा सकेगा। इसके अलावा चंद्रमा पर पानी का वैज्ञानिक महत्व है। इसका उपयोग चंद्रमा पर जियोलॉजिकल एक्टिविटी के रेकॉर्ड के रूप में किया जा सकता है। इसकी मदद से चांद पर ज्वालामुखी, और यहां तक कि एक क्षुद्रग्रह स्ट्राइक ट्रैकर के रूप में भी काम कर सकता है। जब भी चांद पर पानी की बात होती है तो इसके ज्यादातर संकेत ध्रुवों से ही आते हैं।

आपको बता दें कि हमारे प्रज्ञान रोवर ने चांद के साउथ पोल पर कई तत्वों की खोज की है। इसरो इसरो के अनुसार चांद पर एल्युमीनियम (Al), कैल्शियम (Ca), लौह (Fe), क्रोमियम (Cr), टाइटैनियम (Ti) , मैंगनीज, सिलिकॉन और ऑक्सीजन का पता लगाया गया है। इसरो ने कहा कि उम्मीद के मुताबिक, एल्युमीनियम (Al), कैल्सियम (Ca) और ऑक्सिजन (O) का भी पता चला है। हाइड्रोजन (H) की खोज जारी है। इसरो ने बताया कि रोवर पर लगे लेजर संचालित ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (LIBS) उपकरण के जरिए यह संभव हो पाया है।

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By Murari Kumar Senior Content Writer
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